शनिवार, 28 जनवरी 2012

कविता

              बूढ़ा बाप 

सुबह काम को जाता है।
रात को थका हारा घर वापस आता है ।।
सुखी रोटी और प्याज बड़े मजे से खता है ।
जवान बेटे को कुछ नहीं बताता है ।।

खुद भूखा रहकर पकवान बेटे को खिलाता है ।
खुद नंगा रहकर मखमल बेटे को पहनता है ।।
खुद कमजोर रह कर भी मजबूत हड्डी बेटे का बनता है 
जवान बेटे को कुछ नहीं बताता है ।।
मकान-जमीन-बुजुर्गो की निशानी बेच डिग्री 
बेटे को दिलाता है ।।

लेकिन जब बेटे का पंख हो जाता है।
वह घोसला चोर उड़ जाता है।।
वे बूढ़े माता-पिता को पलट कर नहीं देख पाते है।
अपनी बीबी के आचल में ही चिप जाते है।।

माँ से बहु का काम करवाते है।
बाप को घर का चौकिदार बनाते है।।
बूढ़े बाप को दिल का दौरा आ जाता है।
उसका बेटा जब नालायक निकल जाता है।।


घोशला छोड़ बाप सदा के लिए आकाश में 
उड़ जाता है।
पर जवान बेटे को कुछ नहीं बताता है।।
                                                           
                                                              ----सुषमा साव( कांकीनाडा )
      


                दहेजी बेलन 

एक बहु दहेज़ में बेलन संभाले ससुराल पहुची,
सास ने देखा तो बात पूछी-
बहु बेलन ही लाना था तो चांदी का लाती
सबसे पहले अपनी सास की खोपड़ी पर बजाती। 
उधर ससुरजी खिरकी से झांक रहे थे,
बहु दहेज़ में क्या क्या लाइ है, ताक रहे थे,
तुरंत ही बीच में आ टपके, बेलन की तरफ लपके,
बोले बहु चांदी का नहीं,सोने का लाना था,
सास की खोपड़ी के पहले ससुर पर आजमाना था।
सुन कर बहु ने चरण छु लिए,
बोले आगे ऐसा ही बेलन लाऊँगी आप के लिए,
अभी तो ससुराल पहली बार आई हू,
इस लिए काठ का बेलन, काठ के 
पुतले के लिए लाई हु।
                                             ----------बसंती गुप्ता, कलकत्ता 




     हाय दहेज़ 

शादी हुई धूम धाम से 
आ गई घर में लुगाई ।
आई जब मिलन की रात 
बर ने दहेज़ की लिस्ट मंगाई !
"प्रियतमें दहेज़ में क्या-क्या लाई ?"
एक अदद हीरो होंडा 
साथ एक रंगीन टी. वी. सेट 
रिफ्रिज्रेटर, डनलप पिल्लो, सोफा सेट 
डबल बेड पलंग,घडी, सीलिंग फैन
आठ आने की अंगूठी,दो भरी का चैन 
और नगद एक लाख पचास हजार 
प्रीतम, कीजिये सहर्ष स्वीकार ।
सुनकर दूल्हा हो गद-गद मुस्कुराया 
ख़ुशी-ख़ुशी दुल्हन के पास आया 
बोला शरमाओ नहीं,अपनी आखे खोलो 
और कुछ तो मुख से बोलो 
दुल्हे ने जब घूँघट उठाया 
नकली केश हाथ में आया 
पलभर में पति का मन मुरझाया 
पत्नी ने एक और गजब ढाहा 
बोली : अब तो मै हु लक्ष्मी आप के घर की 
इसलिए अब कोई बात नहीं है डर की 
मेरी एक आख असली है, दूसरी पत्थर की ।
वर  ने माथा ठोका 
यह है कैसा करम का खेल,
मुझे क्या पता था,दहेज़ के चक्कर में 
हो जाऊँगा बिलकुल फेल ।
                                                   ---------सुश्री चंचल कुमारी 





 
अनबुझी प्यास (कविता)
Add caption

पहली सावन की पहली वारिश की पहली बौछार हो तुम,
पूनम की मीठी चांदनी का मीठा एहसास हो तुम 
गीत और गजलो में क्या कोई तुम्हे ढूंढे ,
सरगम के सात सुरों की पहली राग हो तुम 
बोझिल सी जिंदगी को ढो रहे है हम,
कुदरत के हसीन महफ़िल को रोकर,खो रहे है हम 
मरुस्थल में मिल जाए पथिक को मरुधान हो तुम,
पहली सावन की पहली वारिश की पहली बौछार हो तुम

कस्ती निकल पड़ी धुंद सागर में, जाने मंजिल कब आएगी,
ख्वाबो की मल्लिका रौशनी लिए कभी तो शाहिल को बुलाएगी
भटके हुए राही को मिलजाए कॉरवा, वो उन्माद हो तुम,
पहली सावन की पहली वारिश की पहली बौछार हो तुम

      हरकोई अपने हिस्से की रखता है दिल में ताज
                    किसी की होती  किसी की नहीं होती है, पूरी दिल की आस |

                   मिल जाता गर मोती किनारों पर पड़े, न लगाता इसे कोई गले 
            हीरा भी कंकर होता गर यू मिल जाता रास्ते पड़े |
       तुफानो में भी रौशनी देती दिलो में, वो आग हो तुम 
       मिलकर भी जो बुझ न पाए 'अनबुझी प्यास' हो तुम,
            पहली सावन की पहली वारिश की पहली बौछार हो तुम | 

                                                                                                          -विनय
                                            


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks For Your valuable Comment.